स्वास्थ्य के विषय में बताते हुए सद्गुरु कह रहे हैं कि बीमारियां दो प्रकार की होती हैं - संक्रामक, जो कि बाहरी जीवाणु के हमले के कारण होती हैं, और पुरानी बीमारियां, जो कि शरीर के भीतर से पैदा होती हैं। जहां संक्रामक बीमारियों के इलाज के लिए बाहरी मदद ज़रूरी होती है, वहीं भीतरी बीमारियां ’इस शरीर को बनाने वाले’ के संपर्क में आकर ठीक की जा सकती हैं। ज़रूरत है तो इस दिशा में ध्यान देने की।